काव्य

काव्य ब्रह्माण्ड के छुपे सौंदर्य और समरूपता और संवेदनशील, प्रेरित आत्माओं की हृदय चुराने वाली मुस्कान के दृश्य की काव्यात्मक अभिव्यक्ति हैं इसके अंतर्गत वे लोग आते हैं। जिनके हृदय दवात बन गए हैं और जिसकी स्याही पवित्र आत्मा की श्वास है।

काव्य परलोक में विचरण के समय सुनाई देने वाली ध्वनि है और इसमें लिप्त लोगों की सिसकियां है। इसकी ध्वनि और लय कभी कर्कश तो कभी सुरीली सुनाई देती है। और ये कवित की आध्यात्मिक स्थिति और आंतरिक गहराई पर निर्भर करती है। इस कारण काव्य के प्रत्येक शब्द और ध्वनि को पूर्ण रूप से तभी समझा जा सकता हैं जब सुनने वाला कविता रचे जाने के समय कवि की आध्यात्मिक अवस्था को जानता हो।

आस्था, संस्कृति, और विचारों की शैली जो कवि के विचार और संवेदनशीलता को प्रभावित करती है उसके अनुसार कविता जन्म लेती हैं और आकार लेती है। अन्तःप्रेरणा इसे गहराती है और इसे मानवीय कल्पना से बाहर की चेतना में ले जाती है। अन्तःप्रेरणा से भरे हृदय में अणु सूर्य और एक बूंद समन्दर बन जाती है।

काव्य में बुद्धि और विचार की भूमिका कितनी भी बड़ी क्यों न हो मानव हृदय की अपनी एक गहन दिशा है। फुडुली 5 के शब्दों में “कवियों के फौज के सामने मेरा शब्द ध्वज वाहक है।” जब हृदय में विकसित हो रहे विचारों को कल्पना के पंख मिलते हैं तो वे अनंतता के दरवाजों को झकझोरने लगते हैं।

“प्रार्थना” जैसे काव्य व्यक्ति के आंतरिक दुनिया के उतार चढ़ाव से लेकर उसके उत्साह और संताप को भी व्यक्त करते हैं। कवि जब परम सत्यों पर ध्यान केंद्रित करता है उसके परिणामस्वरूप जो कविता बनती है वो ऐसी होती है जैसे परालौकिक दुनिया से आती हुई श्वासें। प्रत्येक विनती एक कविता है और प्रत्येक कविता एक विनती है जो कविता को अनंतता की ओर ले जाने के लिए पंख फड़फड़ाती है।

एक कविता जो अनंताता के विचारों में विकसित होती है और शुद्ध विचारों के आसमान में हृदय के पंख और आत्मा की शक्ति से विचरण करती है वो सकारात्मक विचार पर बहुत ध्यान नहीं देती हैं ये भौतिक व प्रत्यक्ष संसार को एक वाहन के रूप में प्रयोग करती है। इसका लक्ष्य उस परम सत्य को प्राप्त करना मात्र होता है।

काव्य सुरमय भाषा से कहीं अधिक है बहुत सी अभौतिक सुक्तियां अपने अर्थ और अभिव्यक्ति के तरीके के कारण भवनाओं को आकर्षित करती है और हृदय को आश्चर्य और विस्मय से भर देती है। प्रत्येक अपने आप में काव्य का कीर्तिस्तंभ हैं।

कला की प्रत्येक शाखा की तरह कोई ऐसा काव्य जिसका अनंत से कोई संबंध नहीं है वो है व्यर्थ और अस्पष्ट है। अनंत सौंदर्य से मंत्रमुग्ध मानव आत्मा, अनंतता से पीड़ित मानव हृदय और शाश्वत के लिए प्रतीक्षा करती मानव अतंरआत्मा कलाकारों को परालौकिक संसार की खोज के लिए विनती करती है। एक कलाकार जो इस विनती का विरोध करता है वो पूरा जीवन बाहरी मुखौटे के साथ व्यतीत करता है लेकिन इससे परे की दुनिया को कभी देख नहीं पाता।

एक कविता जो आत्मा और शरीर जैसा ही संबंध अर्थ और अवस्था में देखती है, बिना एक का दूसरे के लिए बलिदान दिए, वो एक ऐसा सौहार्द प्राप्त करती है जो प्रत्येक व्यक्ति द्वारा पसंद किया जाता है और स्वाभाविक लगता है। ऐसी कविता के लिए कल्पना भी दूसरा मूल भाव नहीं दे सकती है।

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