बच्चे

मानव अस्तित्व के प्रारंभ में आदम का पहले पुरुष के रूप में और ईव का पहली स्त्री के रूप में सृजन हुआ। विवाह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है ये उसका सूचक है। प्रजनन इस प्राकृतिक प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य है। नई पीढ़ी के विकास के अलावा, किसी दूसरे उद्देश्यों से किया गया विवाह एक अस्थाई मनोरंजन और जोखिमपूर्ण कार्य है। ऐसे विवाह के द्वारा पैदा हुए बच्चे एक क्षणिक भावना के दुर्भाग्यपूर्ण उत्पाद है।

एक राष्ट्र का स्थायीत्व युवा पीढ़ी की शिक्षा, उनके राष्ट्र प्रेम, चेतना और उनकी आध्यात्मिक पूर्णता पर निर्भर करता है। यदि राष्ट्र अच्छी पीढ़ी का विकास नहीं कर सकता, जिनके हाथ में वो अपना भविष्य दे सके, तो डस राष्ट्र का भविष्य निश्चय ही अंधकारमय है। ऐसी पीढ़ी का निर्माण निःसंदेह माता-पिता के हाथ में है।

मानव पीढ़ी आती और जाती है। वे लोग सच्चे मनुष्य कहलाने के योग्य है जिन्होंने आध्यात्मिकता के उच्च स्तर को प्राप्त कर लिया है। वे जिन्होंने अपनी आध्यात्मिक अंतर्शक्ति को विकसित नहीं किया है वे मनुष्य कहलाने के योग्य नहीं अपने निम्न शिक्षा स्तर के कारण वे आदम की पी पीढ़ी होने के बावजूद भी एक अजीब रचना से अधिक कुछ भी नहीं है ऐसे बच्चे माता पिता के लिए बोझ की तरह है जिन्होंने दुर्भाग्यवश उनका पालन पोषण किया है।

जब किसी वृक्ष की कटाई-छटाई अच्छे से होती है तो उसकी वृद्धि अच्छी होती है और वो फलदाई होता है। यदि छटाई अच्छे से नहीं हुई तो वृक्ष सिकुड़ जाते है और अविकसित रह जाते है। इसी तरह एक मनुष्य जिसके अंदर प्रचूर मात्रा में कला-कौशल और क्षमता है उसे भी एक वृक्ष की तरह देखभाल मिलनी चाहिए।

आप लोग जो बच्चों को इस दुनिया में लाते हैं, उनका पालन पोषण बहुत ही विशिष्ट भाव से होना चाहिए। जैसे आप उनकी शारीरिक देखभाल करते हैं वैसे ही उनके आध्यात्मिक जीवन की देखभाल होनी चाहिए। ईश्वर के लिए उन मासूमों की रक्षा किजिए और उनका जीवन बरबाद मत होने दीजिए।

यदि माता पिता बच्चों को, उसकी क्षमताएं विकसित करने के लिए और अपने लिए और समाज के काम आने के लिए प्रोत्साहित करते हैं तो उन्होंने राष्ट्र को मजबूत स्तंभ दे दिया। इसके विपरीत अगर उन्होंने अपने बच्चों में मानवीय भावनाओं का बीज नहीं बोया तो उन्होंने समाज में बिच्छुओं को छोड़ दिया होगा।

माता पिता तभी तक अपने बच्चों पर दावा करने का अधिकार रखते है जब तक वे उन्हें अच्छी शिक्षा और गुण देते हैं। वे ऐसा दावा नहीं कर सकते, अगर उन्होंने बच्चों की उपेक्षा की है। लेकिन हम उन माता पिता को क्या कहेंगे, जो अपने बच्चों का परिचय दुराचार और अशिष्टता से कराते है, जो मानवता के लिए हानिकारक साबित होते हैं?