साहित्य

साहित्य किसी राष्ट्र की आध्यात्मिक बनावट विचारों की दुनिया और संस्कृति की भावपूर्ण भाषा है। जो इस भाषा को नहीं समझते वे एक दूसरे को नहीं समझ सकते, चाहे वे एक ही देश के लोग क्यों न हो।

शब्द अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाने का एक उत्तम साधन है। जो इस साधन के उपयोग में सक्षम है वो स्वयं द्वारा दूसरों में डाले गए अपने विचारों के अनेक प्रतिनिधि खोज सकते हैं। और अपने विचारों के द्वारा अमरत्व को प्राप्त कर सकते हैं। जो ऐसा नहीं कर सकते, वे जीवित अवस्था में मानसिक यातना सहन करते हैं, और बिना कोई छाप छोड़े मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।

प्रत्येक साहित्य अपनी अभिव्यक्ति के तरीके और उसमें प्रयोग किए गए विषय वस्तु के कारण एक अद्वितीय भाषा है। कोई इस भाषा को थोड़ा बहुत समझ ले, परंतु कवि और लेखक इसे इसके वास्तविक अर्थ के साथ प्रयोग करते हैं और बोलते हैं।

जैसे सोने और चांदी का व्यापारी ही सोने चांनी का विशेषज्ञ होता है। वैसे ही साहित्यिक आभूषणों को शब्दों का व्यापारी ही अच्छी तरह समझ सकता है। पशु एक फूल को खा जाएगा और उसकी महत्ता को न जानने वाला एक व्यक्ति उसको रौंद कर चला जाएगा। एक वास्तविक मनुष्य ही फूल के सुगंध को ग्रहण करेगा और उसे अपने कोट पर या बालों मंे सजाएगा।

श्रेष्ठ विचारों और श्रेष्ठ विषयों की व्याख्या ऐसी शैली में होनी चाहिए कि वो मस्तिष्क को भेद दे, हृदयों को उत्तेजित कर दे और आत्माओं द्वारा स्वीकार किया जाए। नही तो, अर्थ के ऊपर लोगों को एक फटा और उपहासनीय कपड़ा मिलेगा और वे आंतरिक आभूषण को नहीं खोज पाएंगे।

अर्थ साहित्य का आवश्यक तत्व है। इसलिए शब्द का प्रयोग कम और अर्थ प्रचुर और प्रतिपादित अर्थ होना चाहिए। कुछ लोग अपने विचारों की व्याख्या उपमा, रूपक, संकेत सांकेतिक रूपक और यमकों के द्वारा करते हैं। सबसे अर्थपूर्ण शब्द परिपूर्ण, प्रेरित आत्माओं और गहन कल्पनाओं में पाए जाते हैं जो सभी विद्यमान चीजों को स्वीकार करते हैं और विश्वास करने वाले, समीक्षा करने वाले और संश्लेषण करने वाले मस्तिष्क इस संसार की दृष्टि को प्राप्त करने सक्षम होते है और एक सत्य के दो मुख की तरह होते हैं।