सेवारत लोग

सेवारत लोगों को यह निश्चय अवश्य करना चाहिए, उस कार्य के लिए जिसमें उन्होंने अपनी जान लगा दी है, कि वो “ मवाद और रक्त” का समुद्र पार करें। जब वे इच्छित वस्तु को प्राप्त कर लें, तो उन्हें इतनी परिपक्वता दिखानी चाहिए कि सभी चीजें उसके अधिकारी (यथोचित) स्वामी को समर्पित कर दे और उसको उसके लिए सम्मान और धन्यवाद दें। उनकी आवाजें और श्वासें ईश्वर, महान सृजनकर्ता, का महिमा गान करें। ऐसे लोग सभी चीजों को उच्च स्थान देते हैं और ईश्वर की इच्छा के प्रति इतने संतुलित और आस्थावान होते हैं कि उनकी पूजा नहीं करते जिनकी प्रशंसा उनकी सेवाओं के लिए करते हैं।

सर्वप्रथम, वे समझते है कि अधूरे कार्य के लिए वे उत्तरदायी है, वे सभी लोग जो उनकी सहायता मांगते है के प्रति न्यायसंगत और विचारवान होना चाहिए, और सत्य के समर्थन के लिए अवश्य कार्य करना चाहिए। वे अपनी व्यवस्था भंग होने, योजनाएं विफल होने और उनकी शक्ति खत्म हो जाने पर भी विलक्षण रूप से दृढ़-संकल्प और आशावान रहते हैं।

सेवारत लोग जब नई ऊर्जा के साथ नई ऊँचाई छूते हैं तो बहुत संयत और सहनशील होते हैं, और इतने विचारवान और बुद्धिमान होते हैं कि पहले से ही स्वीकार कर लेते हैं कि मार्ग बहुत ढलावपूर्ण है। इतने उत्साह से भरे, निरंतर प्रयत्नशील और विश्वास से भरे होते हैं कि मार्ग में आई नरक की सभी बाधाओं को स्वेच्छा से पार करते हैं। ऐसे लोग उस कार्य, जिसके लिए उन्होंने स्वयं को समर्पित किया है, के प्रति आस्थावान होते हैं, उससे इतना प्रेम करते हैं कि उसके लिए खुशी-खुशी अपने जीवन और अपनी प्यारी चीजों का बलिदान कर देते हैं। ऐसे लोग इतने विनम्र और ईमानदार होते हैं कि अपनी उपलब्धियां भी किसी को नहीं गिनाते।