स्वतंत्रता

स्वतंत्रता का अर्थ है आत्मा का स्वयं को उन्नत भावनाओं और विचारों मात्र तक सीमित कर लेना और अच्छाई और अच्छे गुणों के अलावा किसी सिद्धांत को न मानना।

बहुत से लोग जो वास्तव में कारागार में या बेड़ियों में है, अपनी चेतना से स्वंतत्र महसूस करते है और अपने कारावास का अनुभव नहीं करते हैं। बहुत से अन्य लोग बड़े बड़े महलों और उद्यानों में रहते हुए भी स्वतंत्रता के सच्चे अर्थ से अनभिज्ञ हैं।

सच्ची स्वतंत्रता सभ्य स्वंतत्रता होती है। ये धर्म और नैतिकता का हीरे का हार और सुदृढ़ विचारों की सोने की हसली पहनती है।

मानव मस्तिष्क के सभी बंधन जो उसे आध्यात्मिक और भौतिक उन्नति से रोकते हैं उनसे मुक्त होना ही सच्ची स्वतंत्रता है। लेकिन तभी तक जब तक की हम उदासीनता और लापरवाही के कुए में ना गिरें।

स्वतंता मनुष्य को जो वो चाहता है वो करने की अनुमति देती है। लेकिन दूसरों को हानि पहुंचाए बिना और सत्य के लिए पूर्ण समर्थन के साथ।

ऐसी स्वतंत्रता जो धार्मिक विचारों और भावनाओं को स्वीकार नहीं करती और जो गुणों और नैतिकता के लिए आधार का काम नहीं करती वो स्वयं को नोचने (खरोचने) की इच्छा की तरह है। ऐसी इच्छा से जुड़े हुए समुदाय धीरे धीरे अशांत हो जाते है और मानवता के सामान्य पथ से भटक जाते हैं।

जो लोग स्वतंत्रता को पूर्ण स्वतंत्रता समझते हैं वे मानवीय स्वतंत्रता और पाशविक स्वतंत्रता में भ्रमित हो जाते हैं। पशुओं पर नैतिकता का कोई प्रश्न नहीं है इसलिए वे नैतिकता के बंधन से मुक्त है। कुछ लोग ऐसी स्वतंत्रता की इच्छा रखते हैं, यदि ऐसा कर सकते है तो शारीरिक जैसी सबसे बुरी इच्छा में लिप्त हो जाते हैं। ऐसी स्वतंत्रता पाशविक स्वतंत्रता से भी निकृष्ट है। सच्ची स्वतंत्रता, जैसे कि नैतिक जिम्मेदारी की स्वतंत्रता, मानवता दर्शाती है जो अंर्तआत्मा को जगाती है और प्रेरित करती है और आत्मा के मार्ग की सभी बाधाएं दूर करती है।

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