अति से बचना

मनुष्य को अपनी सोच और क्रियाकलापों में अति से बचना चाहिए। अति एक प्राणघातक विष है। जैसे गरीबी और फटे पुराने वस्त्रों और एक अभागे घर में कुछ टूटी फूटी चीजों के साथ रहने में सादगी और ईमानदारी को खोजना गलत है, वैसे ही आधुनिक तरीके के घर में हमें वस्त्र दूसरी-ऐशो-आराम की वस्तुओं के साथ रहने में उच्च विकसित, सभ्यता और समृद्धि की तलाश गलत हैं

वे जो आज उत्सव मना रहे हैं।

जो लोग उमृ के बढ़ने के साथ ईश्वर की उपासना के लिए समर्पण नहीं बढ़ाते, वे वास्तव में दुर्भाग्यशाली हैं क्योंकि वे ऐसे समय पर हानि कर रहे हैं जब वे लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यदि वे इसको समझ जाएं तो उसके लिए रोएंगे जिसमें वे आज आनंद प्राप्त कर रहे हैं।

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