युवा

लो लोग राष्ट्र के भविष्य का सही अनुमान लगाना चाहते हैं अपने बच्चों को दिए गये पालन पोषण और शिक्षा की समीक्षा करके ऐसा कर सकते हैं।

इच्छाएं मिठाई की तरह है, और सद्गुण भोजन की तरह है जो थोड़ नमकीन या खट्टा होता है जब बच्चे चयन के लिए स्वतंत्र है तो वे किसको प्राथमिकता देंगे? वैसे ये हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें सदगुणों का मित्र और अशिष्टता और अनैतिकता का शत्रु बनाएं।

जब तक हम अपने बच्चों की शिक्षा के द्वारा सहायताय नहीं करेंगे तब तक वे अपने वातावरण के बंधन में रहते हैं। वे भावावेश में ज्ञान और विवेक से दूर उद्देश्यहीन भटकते रहते हैं। अगर उनकी शिक्षा उन्हें उनके भूत से जोड़े रखती है और उन्हें भविष्य के लिए बुद्धिमानी से तैयार करती है तो वे राष्ट्रीय विचारों और भावनाओं के सच्चे पराक्रमी युवा प्रतिनिधि बन सकते है।

समाज एक शीशे के बर्तन की तरह है और बच्चे उसमें डाले गए द्रव की तरह है ध्यान दें कि द्रव बर्तन का आकार और रंग ले लेता है। बुराईयों से भरे हुए लोग बच्चों को सत्य की जगह अपनी आज्ञा मानने को कहते हैं। क्या ऐसे लोग स्वयं से कभी सवाल नहीं करते? क्या उन्हंे भी सत्य की आज्ञा नहीं माननी चाहिए?

एक राष्ट्र का विकास या पतन उसकी आत्मा, चेतना बच्चों के पालन पोषण और शिक्षा पर आधारित है। राष्ट्र जो अपने बच्चों का पालन पोषण उचित तरीके से करता है वो सदा विकास के लिए तैयार है जबकि वे जो ऐसा नहीं करते उनका एक कदम भी आगे बढ़ना असंभव है।

युवा, शक्ति और बुद्धि के नन्हे पौधे हैं। यदि उन्हें सही शिक्षा और प्रशिक्षण दिया जाए तो एक महानायक की तरह सारी बाधाएं पार करके एक ऐसा मस्तिष्क प्राप्त करते है जो हृदयों और पूरे विश्व को प्रकाशित करता है।

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प्रकाशनाधिकार © 2024 फ़तेहउल्लाह गुलेन. सर्वाधिकार सुरक्षित
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