बच्चों के अधिकार
एक बच्चा मानवता के निरंतरता के लिए वैसा ही है जैसे एक वन के निरंतर विकास और वृद्धि के लिए एक बींज वे लोग जो अपने बच्चों की उपेक्षा करते हैं उनका धीरे धीरे क्षय होता है, और वे जो बच्चों को विदेशी संस्कृति की तरफ सौंप देते हैं वे अपनी पहचान खो देते हैं।
प्रत्येक तीस या चालीस वर्षों बाद बच्चे समाज का सबसे सक्रिय और उत्पादक भाग बनते हैं। वे जो अपनी युवा पीढ़ी की उपेक्षा करते हैं उन्हें सोचना चाहिए कि अपने समाज के कितने महत्वपूर्ण तत्व को उपेक्षित कर रहे हैं, फिर घृणा कर रहे हैं।
आज की पीढ़ी में दिखने वाले दोष, जैसे कुछ शासकों की अक्षमता और अन्य सामाजिक समस्याएं तीस वर्ष पहले की स्थिति और उस समय के शासक वग्र का सीधा परिणाम है। वैसे ही जो लोग आज की युवा पीढ़ी को शिक्षित कर रहे हैं, वे तीस वर्षों बाद जो गुण और दोष समाज में दिखाई देंगे उसके लिए जिम्मेदार हैं।
जो अपना भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं उन्हें अपनी अधिक से अधिक ऊर्जा अपने बच्चों के पालन पोषण में लगाना चाहिए, वैसे ही जैसे वे अन्य समस्याओं को सुलझाने में लगाते हैं। जो भी ऊर्जा हम अन्य चीजों को समर्पित करते है वो व्यर्थ जा सकती है, लेकिन नयी पीढ़ी के पालन पोषण में लगने वाली ऊर्जा उन्हें मानवता के स्तर पर उठा देती है। ऐसे लोग एक अंतहीन के स्रोत की तरह है।
हमारे समाज के ऐसे लोग जो भटक गये हैं और दुखी है, जैसे व्यसनी और अन्य दुराचारी, वे लोग भी कभी बच्चे थे। हम उन्हें अच्छी शिक्षा देने में विफल हो गए। मुझे आश्चर्य है कि क्या हमें पता है कि कल के लिए हम किस तरह के लोगों को तैयार कर रहे हैं।
वे समाज, जो परिवारों और बच्चों की शिक्षा पर समुचित ध्यान नहीं देते है और बच्चों की शिक्षा को उपेक्षित करते हैं, फिर वे विज्ञान और तकनीक में कितने भी अच्छे क्यों न हो, एक दिन वे समय चक्र द्वारा निर्दयता से कुचल दिए जाएंगे।
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